Friday, February 29, 2008

Kahe Kabir suno bhai sadho

साँई इतना दीजिये, जाँ मे कुटुम्ब समाये
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू न भूखा जाये

धीरे धीरे रे मना, धीरे से सब होए
माली सीँचे सौ घड़ा, ऋत आये फल होए

काल करे सो आज कर , आज करे सो अब
पल में परले होएगी, बहूरि करोगे कब

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोए
अपना तन शीतल करे , औरन को सुख देय

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुँख माँहि
मनुआ तो चहुँ दिस फिरे, ये तो सिमरन नाँहि

बड़ा हुआ तो क्या हुआ , जैसे पेड़ खज़ूर
पंछी को छाया नही, फल लागे अति दूर

जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि हैं मैं नाहि
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि

माला फेरत जुग भया, गया ना मन का फेर
कर का मनका डार देय, मन का मनका फेर

कबीरा खड़ा बज़ार में, माँगे सबकी खैर

ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर