Wednesday, February 07, 2007

आज न कोई दूर, न कोई पास है, फिर भी जाने क्यों मन उदास है

while going thru my almirah full of old books , came across an old diary of mine, in which I had noted down this beautiful piece of poetry.
I don't remember who is the author of these lines, if you do, please let me know.

आज न कोई दूर, न कोई पास है,
फिर भी जाने क्यों मन उदास है ।
आज न सूनापन भी मुझसे बोलता,
पात न पीपल पर भी कोई डोलता ।
ठिठकी सी है वायु, थका सा नीर है,
सहमी सहमी रात, चाँद गभींर है,
गुपचुप धरती, गुमसुम सब आकाश है,
फिर भी जाने क्यों, मन उदास है ।

आज शाम को झरी नही कोई कली,
आज अंधेरी रही नही कोई गली,
आज न कोई पंथी भटका राह में,
जला पपीहा न आज प्रिय की चाह में,
आज नही पतझर, नही मधुमास है
फिर भी जाने क्यों मन उदास है ।

आज अधूरा न कोई गीत रह गया,
चुभने वाली बात न कोई कह गया,
मिल कर कोई मीत आज छूटा नही,
जुड़ कर आज स्वप्न कोई टूटा नहीं,
आज न कोई दर्द, न कोई प्यास है,
फिर भी जाने क्यों मन उदास है ।

1 comment:

nimish said...

ये गोपालदास "नीरज" जी की रचना है