Sunday, March 11, 2007

जाग तुझको दूर जाना

Yet another one noted in my diary about a decade back.. dont know the name of the Poet.

चिर सजग आँखे उनींदी, आज कैसा व्यस्त बाना ।
जाग तुझको दूर जाना ॥

अचल हिमगिरी के ह्रदय में, आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आंसुओ में, मौन अलसित व्योम रो ले ।
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग कर विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले ।
पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ जाना
जाग तुझ को दूर जाना ॥

बाँध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बँधन सजीले ?
पथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले ?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन ?
क्या डुबो देंगे तुझे ये फूल के दल ओस गीले ?
तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना ।
जाग तुझ को दूर जाना ॥

वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,
दे किसे अमृत सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया ।
सो गयी आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या ?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नीँद बन कर पास आया ?
अमरता के सुत क्यों चाहता मृत्यु को उर में बसाना ?
जाग तुझ को दूर जाना ॥

कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी द्रग में सजेगा आज पानी
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की कहानी
है तझे अगाँर शैय्या पर मृदुल कलियां बिछाना ।
जाग तुझ को दूर जाना ॥

4 comments:

Unknown said...

very good kavita ! jag tujko door jana... cheers..rahul

Anonymous said...

This famous poem is by Mahadevi Verma.

Akhil said...

by Mahadevi Verma

Samira said...

Please can anyone summarize this poem...as I am student and i have this poem for exam....please someone help to write well and do justification for the poem...