Listening to an old ghazal of Jauk (contemporary fo Ghalib), sung by K L Sehgal.
लाई हयात आये, कजा ले चली चले
न अपनी खुशी से आये, न अपनी ख़ुशी चले
बेहतर तो है यही के न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करे जो काम न बेदिल्लगी चले
दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो य़ू ही, जब तक चली चले
हयात - Nature, existence
कजा - Death
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