Monday, November 07, 2011

माया माया रे, ठगनी माया रे

Listening to Maya - a collaboration between Indian Ocean and Mohit Chauhan. Song is good, but somehow Mohit Chauhan was missing - I mean, it was more of a guest appearance for Mohit and did not appear to be a collaboration at any stage.

btw माया क्या है

अच्छा सवाल है
एक कहानी सुनाता हूँ, बचपन मे पढ़ी थी, याद नहीं कहाँ .
इस कहानी को कई तरह से सुनाया गया है, कभी कृष्ण सुदामा तो कभी विष्णु नारद और कभी कृष्ण और नारद के बीच हुई बातो के तौर पर.
कही सुदामा पानी लाने की जगह एक लड़की के प्रेम में फँस जाते है तो कही वो खुद एक लड़की के रूप में जन्म लेते है ..

जो हमें ज्यादा बढ़िया लगी, वो कहानी हम आप तक पहुचाते है - अपने अंदाज़ मे, यानी थोड़े फेर बदल के साथ

सुदामा जी को कृष्ण से कहते है , प्रभु हमें भी समझाओ तो सही की ये माया है क्या आखिर.
उनकी जिद के आगे कृष्ण भी झुक जाते है और कहते है माया को समझा नहीं जाता अनुभव किया जाता है. खैर कोई बात नहीं एक बार नदी मे एक डुबकी लगा के तो आओ, फिर तुम्हे बताता हूँ की माया क्या है.
सुदामा जी जैसे ही डुबकी लगाने लगते है, उनका पैर फिसल जाता है. नदी मे एक घड़ियाल होता है जो उनका पैर खीच के उन्हें गहरे पानी मे खींच लेता है और सुदामा कृष्ण को आवाज़ भी नहीं दे पाते, और मृत्यु को प्राप्त होते है.
सुदामा कुछ सोचते उस से पहले ही उन्हें दिखता है की उनकी आत्मा पुनरजन्म के लिए नगर सेठ के घर की और चल पड़ी है. सुदामा जी का जन्म नगर सेठ के घर मे होता है, मगर जब तक वो कुछ बोलना सीख पाते, वो कृष्ण और अपने पिछले जन्म को ही भूल जाते है और नये जीवन मे रम जाते है. जैसे जैसे समय बीतता जाता है , सुदामा युवा होते है, नगर सेठ बनते है और एक सुन्दर सी कन्या से उनका विवाह होता है. जीवन अच्छे से व्यतीत होने लगता है. पुत्र पुत्रियों के अलावा पोत्र पोत्री, प्रपोत्र, प्रपोत्री भी बड़े होने लगते है, और एक दिन उनका यानि नगर सेठ के शरीर का अंतिम दिन भी आ जाता है. मृत्यु के बाद सुदामा को अपना शरीर जलने के लिए ले के जाता दिखता है और वो अपने शोक कुल परिवार से अलग होने के बारे मे सोच कर बहुत ज्यादा दुखी होते है, जैसे ही राम नाम सत्य है का कोलाहल उन्हें दूर से सुनाई देता है, अचानक उनका शरीर ऊपर उठने लगता है. सुदामा यानि नगरसेठ अपने परिवार को जोर से आवाज़ देंना चाहते है, मगर अचानक देखते है की वो तो नदी मे है और कृष्ण उनके बगल मे खड़े मंद मंद मुस्कुरा रहे है, तभी उन्हें सामने से आता हुआ अपना यानि नगर सेठ का परिवार दिखता है. वो सब नगर सेठ के शरीर को जलाने नदी किनारे आये होते है, सुदामा उन्हें आवाज़ देना चाहते है मगर उनका गला रुंध सा जाता है. उन्हें समझ मे आ गया होता है, की एक पल मे, एक डुबकी लगाने जितने समय में वो एक पूरा जीवन जी चुके होते है.

यही माया है.



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